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उसका दोष क्या है भाग - 3 15 पार्ट सीरीज

       
                             उसका दोष क्या है 15 पार्ट सीरीज


             कहानी अब तक 
   विद्या अपने जीवन की कथा लेखिका ज्योति को सुनाती है l
                         अब आगे 
         विद्या की कथा ज्योति केशब्दों में 
       दसवीं पास करने के बाद राँची के प्रसिद्ध महिला कॉलेज में नामांकन  करवाया गया था विद्या का। उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं थी। अभी तक स्कूल के यूनिफॉर्म में रहने वाली विद्या पहली बार रंगीन सलवार कुर्ती पहन कर कॉलेज गई थी। कॉलेज का खुला वातावरण उसे बहुत ही मनमोहक लग रहा था। पहले दिन ही उसकी कई सहेलियां बन गईं। उनके साथ मिलकर क्लास के बाद कभी कैंटीन में जाती कभी मैदान में नीचे घास पे बैठती। पहला दिन उसका बहुत ही अच्छा बीता। सभी  लड़कियों का एक दूसरे से परिचय हुआ। एक लड़की रमा तो विद्या के घर के रास्ते में ही रहती थी, उससे पहले दिन ही बहनापा जोड़ लिया और एक  साथ कॉलेज आना जाना तय कर लिया। अब तो अक्सर विद्या और रमा एक साथ ही कॉलेज से घर आती। रमा रास्ते में अपने घर चली जाती और विद्या आगे बढ़ जाती। कॉलेज जाते समय भी रमा विद्या की प्रतीक्षा करती रहती और विद्या के आने पर साथ ही कॉलेज जाती।
  एकसाथ आते जाते उनकी दोस्ती बहुत गहरी हो गई। विद्या और रमा एक दूसरी के घर भी आती जाती थी। विद्या के घर में उसके माता-पिता भाई-बहन थे रमा के घर माता पिता के अतिरिक्त एक छोटी बहन थी सीमा। उसके बड़े भैया दिल्ली रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। रमा की छोटी बहन भी विद्या से बहुत घुलमिल गई थी। दोनों के परिवार के बीच भी धीरे धीरे सम्बन्ध गहरा होता गया।
  छुट्टियों में दोनों सखियां कभी घूमने का  कार्यक्रम तय कर लेतीं। कभी-कभी वे  छुट्टियों के दिन भी सेंट्रल लाइब्रेरी जाकर किताबें लेकर पढ़ने बैठ जातीं। इस तरह दो वर्ष कैसे निकल गए पता ही नहीं चला। बी.ए. के प्रथम वर्ष में विद्या और रमा ने  साथ साथ नामांकन लिया।
   रमा के पड़ोस में उसका एक रिश्ते का भाई रमेश रहता था। रमा के घर आने पर अकसर वह विद्या को मिल जाता। रमा की छोटी बहन को पढ़ाता भी था वह। अक्सर उसने विद्या और रमा की भी पढ़ाई में मदद की थी। इस तरह विद्या का रमेश से अच्छा परिचय हो गया था। कभी-कभी लाइब्रेरी से निकलते समय रांची में भी उनकी मुलाकात हो जाती,और वह अपनी बाइक से दोनों को घर ले आता। वहां से रमा फिर अपने घर चली जाती। कई बार रमेश ने कहा भी वह घर तक छोड़ देगा। रमा भी उसे रमेश के साथ जाने को कहती,परंतु विद्या नहीं  तैयार होती। कहती – "नहीं मैं चली जाऊंगी"।
  छुट्टी के दिन लाइब्रेरी जाने के लिए  निकली विद्या और रमा उसके घर से बाहर निकल कर सड़क पर आई थी तभी रमेश दिखा जो बाइक लेकर कहीं जा रहा था। रमेश ने पूछा -  
  "कहां जा रही हो तुम लोग"?
  रमा   -   "भैया हम लोग लाइब्रेरी जा रही हैं। पिछले सप्ताह वहां से किताबें ली थी, वापस करूंगी और आज फिर हम दो-दो किताबें इश्यू करवाएंगी। कुछ देर वहां बैठकर पढ़ना भी है। वहां पर प्रतियोगिता की सभी पत्रिकाएं मिल जाती हैं। पढ़ भी लेंगे,इतनी पत्रिकाएं हम लोग घर में कहां ले पाते हैं। वहाँ सुविधा होती है,लाइब्रेरी में बैठकर पत्रिकाएं हम लोग पढ़ लेती हैं और दो पुस्तक लेकर घर आ जाती हैं"।
     "चलो मैं भी रांची जा रहा हूं तुम दोनों बैठ जाओ मेरे पीछे"।
विद्या और रमा रमेश के साथ रांची आई। इन दोनों का घर नामकुम था जो कॉलेज से लगभग 20 किलोमीटर पड़ता था और ये प्रत्येक दिन ऑटो के द्वारा  अपने कॉलेज जाती थी, जिसमें काफी देर लगती थी; इसलिए रमेश के बाइक से ले जाने के ऑफर पर दोनों ही बैठ गईं। 
    रांची आने के बाद लाइब्रेरी के बदले रमेश ने बाइक दूसरी दिशा में आगे बढ़ाई तो रमा ने कहा -   " भैया हमारी लाइब्रेरी इस साइड नहीं है, रास्ता बाईं ओर से है"।
   रमेश -   "मुझे पता है रास्ता जहाँ जाना है तुम्हें, जिस लाइब्रेरी जाना है मैं तुम्हें छोड़ दूंगा; अभी नहा धोकर मैं पहाड़ी मंदिर जाने के लिए निकला था , चलो तुम लोग भी पूजा कर लेना"।
  रमा  -  " परन्तु हम लोग तो नाश्ता करके निकले हैं"।
   रमेश  -  "तो क्या भगवान ने कहा है कि नाश्ता के बाद भगवान का दर्शन नहीं  करना होता है, चलो"।
   इस तरह वह उन्हें लेकर पहाड़ी मंदिर आया। वहाँ तीनों ने पूजा किया और वहां से निकल कर रमेश उन्हें एक होटल ले गया। होटल के पास बाइक रोकने पर फिर वे चौंक गईं।
    विद्या अब आप हमें होटल क्यों लाए हैं ? अब हमें लाइब्रेरी जाना है देर हो जायेगी, आप जाइए होटल हम लोग लाइब्रेरी चले जाएंगे"।
   रमेश - "आप लोगों ने खा लिया है इसका क्या मतलब है मुझे भूख नहीं लगी है ? मैं तो भूखा हूं, और मैं अकेले नाश्ता करुँ आप लोगों को भेजकर मुझे अच्छा लगेगा क्या"?
  कहते हुए वह दोनों को होटल में लाया वहाँ तीनों ने नाश्ता किया, कॉफी पी फिर ये लोग लाइब्रेरी आये। रमेश भी इन दोनों के साथ लाइब्रेरी के अन्दर जाने लगा तो रमा बोली  -  "क्या बात है भैया,आज आप लाइब्रेरी हम लोग के साथ आए"।
   रमेश  -  "क्यों नहीं आ सकता क्या ? क्या लाइब्रेरी में पढ़ने का अधिकार सिर्फ लड़कियों को है, लड़कों को नहीं"!
  रमा हंस पड़ी -  " नहीं भैया ऐसा नहीं है मैं तो सिर्फ यह ऐसे ही पूछ रही थी"।
    रमेश -  "आज सोचा तुम लोग के साथ मैं भी कुछ पढ़ाई कर लूँ लाइब्रेरी में बैठकर"।
  सब लोग लाइब्रेरी में बैठे,पहले उस दिन का अखबार लेकर पढ़ने लगे। रमा पुस्तकें वापस करने गई। अचानक रमेश ने विद्या से पूछा -  "आपने भगवान शिव से क्या मांगा"।
  विद्या  -  "बस मेरा रिजल्ट अच्छा होता रहे,और आपने क्या मांगा"।
रमेश  -  "आपको"।
       " जी"   -  विद्या घबड़ा गई l रमेश ने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया और कहा -   
    "हां विद्या मैं आपको बहुत पसंद करता हूं, जब आपको पहली बार देखा तब से ही। कई बार कहने का प्रयास किया मगर कह नहीं पाया। ईश्वर से हमेशा आपके लिये कामना और प्रार्थना करता रहा। और आज भी मैंने   ईश्वर से यही माँगा। मैं आपको जीवन साथी के रूप में पाना चाहता हूं"।
  विद्या ने अपना हाथ खींचना चाहा परंतु उसने मजबूती से उसका हाथ थामा हुआ था। विद्या को पसीना छूटने लगा l 
   
                                    क्रमशः

                          निर्मला कर्ण

 

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2 Comments

Abhilasha Deshpande

29-Jun-2023 08:20 PM

बहोत सुंदर

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Nice parts

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